Saturday 6 April 2019

Duties of The Media, Peoples, Political Parties, Ruling Party and Opposition Parties in Democracy.

103rd BLOG POST -->>

Parveen Kumar Sahrawat
At Museum of History of Indian Democracy.
           चुनाव के महापर्व में सभी मित्रोँ को भारतीय नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०७६, उगादिगुड़ी पड़वा, चैती चांद, नवरेह, वैशाखी, और साजिबू चेरोबा की हार्दिक शुभकामनाएं। आप सभी के लिए नवसंवत्सर समृद्धि, ख़ुशहाली और सफलता से परिपूर्ण हो। आइए, नवीन उत्साह व ऊर्जा के साथ राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में अपना सक्रिय योगदान देने का संकल्प लें।

इस देश की जनता भारत की भाग्यविधाता है। एक समझदार व्यक्ति की लोकतंत्र के माध्यम से चुने हुए सत्तारूढ़ एवं सत्ताच्युत व्यक्तियों के समूह से सदैव यही अपेक्षा होती है कि वह देश तथा समाज के सर्वांगीण विकास के साथ साथ आर्थिक एवं सामाजिक समरसता बनाएं रखे एवं देश के विकास तथा सुरक्षा के मसलों पर व्यक्तिगत ना होकर देशहित में एकमत से निर्णय लेकर कार्य करें तभी लोकतंत्र सही मायने में सफल माना जाता है।

आज मीडिया और सोशल मीडिया ने लोकतंत्र को बहुत हद तक प्रभावित किया है। आजकल ये चिंता का विषय है कि मीडिया खबरो का जिस तरह प्रस्तुतिकरण करता है और जिस भाषा का उपयोग राजनीतिक पार्टियों के लिए करता है, इस पर विश्लेषण करने कि आवशकता है क्योंकि इन सब से सबसे ज्यादा प्रभावित होती है युवा पीढ़ी जिसे अभी अपने इतिहास का पूरी तरह से ज्ञान नहीं है वह मीडिया से प्राप्त ज्ञान को ही अपना ज्ञान समझते हैं और उसके आधार पर झूठ को सच मान कर अपनी बात पर अड़ जाते हैं।

मीडिया अक्सर अपनी ख़बरों में जिस राजनीतिक दल की सरकार होती है उसे रूलिंग पार्टी कहता है, और जो दल सरकार में नही होता उसे ऑपज़िशन कहकर सम्बोधित करता है। कभी-कभी उन्हें पक्ष-विपक्ष के नाम से भी पुकारता है और हमें लगातार सुनने को मिलता है की फ़लाँ दल सत्ता में है और फ़लाँ दल सत्ता में नही है। जबकि देखा जाए तो सभी राजनीतिक दल देश, समाज और विकास के पक्ष में होते हैं, तो फिर विपक्ष में होने का अर्थ क्या हुआ ? तो क्या किसी भी राजनैतिक दल को जो बहुमत वाले दल के पक्ष में ना हो, उसे देश के विपक्ष में होना माना जाएगा ? यदि ऐसा होता तो जनता बारी-बारी से हर पक्ष को राष्ट्र के निर्णय, नीति, और नियति के निर्माण का अधिकार नही देती। बहुमत में नही होने का अर्थ सत्ता में ना होना नही होता है क्योंकि लोकतंत्र में देश के कल्याण के लिए दल होते हैं, दलों के कल्याण के लिए देश नही होता है । इसलिए ये सारे विशेषण लोकतांत्रिक व्यवस्था में उपयुक्त नही है, क्योंकि लोकतंत्र में हम पर किसी एक व्यक्ति का शासन (Ruled by) नही हैं,  हम पर प्रजा द्वारा चुने हुए पार्टी के उमिद्वारो का शासन होता हैं।

किसी एक व्यक्ति का शासन (Ruled by) वाली भाषा तब उचित थी जब हमारे यहाँ राजे महाराजे हुआ करते थे, या तब जब हम ग़ुलाम थे जब भारत ब्रिटेन का उपनिवेशदेश हुआ करता था। किंतु अब हम स्वतंत्र हैं तो हम सबको और हमारी पत्रकारिता वाले मीडिया को भी शब्दों के अर्थ और उनका महत्व समझते हुए अपनी भाषा में सुधार करने की ज़रूरी है, क्योंकि ये निश्चित है कि जब तक हमारी भाषा नही बदलेगी तब तक हमारे अंदर के भाव भी स्वतंत्रता की आभा से नही दमकेंगे, और हम सब स्वतंत्र होते हुए भी परतंत्र के जैसा आचरण करते रहेंगे, हम सब लोकतंत्र में रहते हुए भी राजतंत्र के प्रभाव से भरे रहेंगे। यही कारण है कि जो स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी हम रक्षण नही आरक्षण पर विचार करते हैं। जबकि स्वतंत्रता का अर्थ निर्भर नही, आत्मनिर्भर होना है। हम सब को इस सोच को बदलने कि आवश्यकता हैं।

लोकतंत्र मे व्यक्ति नही, व्यवस्था सर्वोपरी होती हैं, पर कभीकभार लगता है कि व्यवस्था अव्यवस्थित हो गई हैं। अगर संचालक मंडल और नियंत्रक मंडल की भावना के अनुरूप पक्ष और विपक्ष दल कार्य करें तो वह दिन दूर नहीं जब रामराज्य स्थापित हो जाएगा और हमारे देश के लोग आज़ादी के इतने सालों बाद भी आरक्षण ,जाति प्रथा, रोजगार, सबको शिक्षा जैसे मुद्दों पर न अटके हुए होते । बीते दिनों में जिस तरह कि गिरावट भाषा और भाव के क्षेत्र में देखने को मिली है वह नहीं होती ।

इस देश के लोगों को याद रखने योग्य बात ये है कि लोकतंत्र में शासन नही प्रशासन का महत्व होता है, इसमें व्यक्ति नही, व्यवस्था सर्वोपरी होती है, इसलिए रूलिंग पार्टी और ऑपज़िशन पार्टी कहना उचित नही होगा। लोकतंत्र में गवर्निंग पार्टी अर्थात संचालक मंडल और कंट्रोलिंग पार्टी यानि नियंत्रक मंडल कहना अधिक उपयुक्त होता है। जिस दल के पास बहुमत है उसका कर्तव्य व्यवस्था को संचालित ( गवर्न ) करना होता है, और जिन दलों के पास बहुमत नही है उनका दायित्व होता है की वे संचालक मंडल को नियंत्रित ( कंट्रोल ) करने का कार्य करें जिससे वे जनता जनार्दन द्वारा दिए गए अधिकारों का सदुपयोग कर राष्ट्र की प्रगति में सहायक हों। लोकतंत्र में गवर्निंग पार्टी और कंट्रोलिंग पार्टी को अलग-अलग विचारधाराओं के पोषक होने के बाद भी एक दूसरे का बाधक नही साधक होना अनिवार्य होता है क्योंकि सबका हेतु एक ही होता है और वो है- जनकल्याण, राष्ट्रकल्याण, विकास और प्रगति।

धन्यवाद् 
प्रवीन कुमार सहरावत
☺️☺️

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