Saturday 28 April 2018

आजादी और बर्बादी के बीच एक लम्हे का अंतर - मेरी ना में मेरी हाँ है क्या ?

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नमस्कार
पिछला ब्लॉग पोस्ट लिखे हुए शायद एक साल से ज्यादा हो गया है | संक्षेप में यही कहूँगा कि इस दोरान पेशेवर ब्लॉगर का अच्छा अनुभव रहा और ये संभव हुआ तो केवल ब्लॉगर पर लिखे गये ब्लॉग से | पेशेवर ब्लॉगर के दोरान कई धार्मिक, सामाजिक और कई जटिल मुद्दों पर गहन अध्यन करने का सुअवसर मिला | चलो आज अपने ब्लॉग पर आते है और कुछ लिखते है |

भारत में दो बड़ी बुरी बातें है | एक स्त्रियों का तिरस्कार और दूसरा गरीबो का जाति भेद के द्वारा पीसना | राजनीती द्वारा दूसरा काम आजकल बखूबी हो रहा है और साथ ही इस का एक बहुत लम्बा इतिहास भी है | लेकिन आजकल कुछ अच्छा हो रहा है तो वो है लडकियो को लेकर सजगता | लिंगानुपात में सुधार, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ , सुकन्या समर्धि खाता योजना आदि आदि ऐसी बहुत सी योजनायें है जो कहीं न कहीं लडकियो के उज्जवल भविष्य की और संकेत करते है |

       बाहुबली चलचित्र शायद सभी ने देखी होगीं या फिर इस के बारे में कहीं तो सुना होगा की भारत कि सबसे सफलतम चलचित्र में से एक है | बाहुबली जैसी फिल्म कभी ऐसे सफल नही होती है इसके लिए नायक नायिकाओ के पात्र के बारे में भी सोचना पड़ता है | ठीक वैसे ही अगर समाज के लोग सोचे तो एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते है , ठीक वैसे ही समाज में महिलाओं के बारे में सोचे, ठीक वैसे ही खुद के बारे में सोचिये |

      
      बड़े और शिक्षित घरों में लडकियो की स्थिति जरूर अच्छी है | कभी कभी अपने उम्र के लोगो को देखे खासकर लड़कीयों को तो पता चलता है कि वो अकेले ही दुनिया कि सेर पर निकल पड़ते है जैसे उन्हें सब पता है | उनका आत्मविश्वास देखने लायक बनता है | अगर ये सब है तो उन की शिक्षा, परिवार के सदस्यों की अच्छी सोच के कारण ही है | पर मध्यम वर्ग एवं निम्न वर्ग पर आते है काफी तरह की बंदिशों का सामना करना पड़ रहा है | यहाँ पर एक हद तक यहाँ के वातावरण ही मुख्य कारण है | ज्यादातर यहाँ पर इतनी आज़ादी मिलते ही लडकियों / छात्राओं के भरोसो पर सवाल उठने लगते है | और कभी कभी एक छोटी सी गलती होने पर तो ऐसा मानने लगते है कि उन्होंने अपने पिता के संस्कारो को गलत साबित कर दिया है |

लेकिन ये भी सच है की आज़ादी और बर्बादी के बीच केवल एक लम्हे का अंतर होता है और वो लम्हा कब हाथ से निकल जाये पता ही नहीं चलता | एक झूठ सिर्फ एक झूठ कब आदत बन जाये तुम जान भी नही पाओगे |

      ज्यादातर लडकियों, महिलाओं के फैसले उन की मर्जी के बिना लिए जाते है या फिर उन पर मानने के दबाव होता है | यहाँ पर उन की ना में ही हां समझी जाती है जिससे इन लडकियो और महिलाओं को लगता है कि मेरी ना में ही मेरी हां है | इसलिए उन्हें यह समझना जरूरी है कि मेरी ना में मेरी हाँ है क्या ? और है तो क्यूँ है | कभी कभी डर लगता है उन्हें कि जीवन के इस खेल में खुद को खो ना दे | किसी रिश्ते में बंध के ना रह जाये और फिर वही रिश्ते उनकी पहचान बन जाती है | कभी भी कुछ देर के लिए वो कोन है नही बन पायगी | क्या उसे कभी भी नही पता चलेगा कि वह कोन है और क्या कर सकती है |

पहले ये समझना चाहिए कि उन्हें क्या करना है | क्या लडकिया शादी के अलावा और कुछ नही कर सकती ? क्या पूरी जिंदगी उसे किसी कि बहन, बेटी, बहु बन कर रहना होगा | किसी और कि बीवी बनने से पहले या किसी को जानो उस से पहले खुद को पहचानना जानो | तुम कोन हो और क्या कर सकती है | अगर वो कुछ अलग करती है तो वहाँ कहानियाँ भी जरूर चलती है | जहाँ हर घर कि कहानी चलती है , अब जहाँ इतनी आग है वहाँ थोड़ा धुआं तो उठेगा ही | :-D इस सब के लिए आवश्यक हैं कि वो काम कि बजाये खुद को ढूँढने की कोशिश करे | उन को निश्चय करना होगा कि कभी जीतेंगे कभी सीखेंगे लेकिन कभी हार नही मानंगे | इस एक ज़िन्दगी में हमे मंजिल पानी है | बस यहीं एक मंजिल है उदेश्य है | बस यही कोशिश करनी है और जब कोशिश के पैर थक जायंगे तब सपनो के पंख मंजिल तक पहुंचायंगे !

क्या एक बार इस दुनिया को देखने कि हिम्मत करनी चाहिए ? अगर सपनो के पंख मंजिल तक पहुँचाने वाले है तो सपना देखे बगैर पंख कहाँ मिलेंगे | इसलिए जो सपना दिखाते है वो रास्ता भी बता सकते है | या फिर ऐसा जो कभी ना किया है | इतनी बड़ी दुनिया में मेरे सपने छोटे कैसे हो सकते है | छोट शहर या गाँव से हो तो भी सपने बड़े होने चाहिए | एक ऐसा जीवन जियो जिस में सारी की सारी दुनिया समा जाये | इन सब के लिए जरूरी वो अपने पंख के साथ आसमान को देखे और जाने कि मेरे पंख कोनसे आसमान छुना चाहते है | जिस दिन इस बात को समझोगे उस दिन दिल में घंटी बजेगी और जीवन का दरवाजा अपने आप खुल जायेगा |

जब घुटन अन्दर होती है ना तो सास अंदर नही मिलती है | इसी घुटन के कारण घर का रास्ता भूल तो नही गए थे | अगर घुटन होगी तो कभी कभी मन सनाटा छा जाता है और सनाटे में सिर्फ अपनी आवाज़ सुनाई देती है | संसार के इतिहास में वे ही क्षण जीवित है जिनका विकाश साहस से हुआ है | यह जीवन की गति है , मानवता का उठान है | यह शारीरिक नही आत्मा की गति का नाम है |

सर्वप्रथम स्त्रियों का वर्तमान दशा से उद्धार करना होगा | आम जनता को जगाना होगा | तभी तो भारतवर्ष का कल्याण होगा | स्त्रियों की पूजा करके ही सभी देश बड़े बने है | जिस देश में स्त्रियों की पूजा नहीं होती वह देश कभी बड़ा नही बन सकता है और न नही भविष्य में कभी बन सकेगा | धर्म शिल्प विज्ञान घर के कार्य रसोई सिलाई स्वास्थ्य आदि सब विषयो कि मोटी मोटी बातें सिखलान उचित है | नाटक और अनेतिक उपन्यास तो उनके पास पहुँचने ही नही चाहिए | लेकिन यहाँ पूजा पाठ सिखाने से भी काम नही चलेगा | दुनिया के सभी मुद्दों पर नही इन कि आँखे खोल देनी चाहिए | छात्रों के सामने हमेशा आदर्श नारी चरित्र रखकर त्यागरूप व्रत में उनका अनुराग जगाना होगा |

अब भी कुछ सपने देखने है |
धन्यवाद्
प्रवीन कुमार सहरावत

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