112th BLOG POST -->>
क्या करोगे खुद से मिल भी गए तो,
भुला कर खुद को चलना ही दस्तूर है तो,
तो क्यों सबसे अपना नाम पूछते रहते हो दोस्त,
अगर नाम अपना कोई तुम्हें मंजूर नहीं है तो,
तो छोड़ो इन बातों को,
जो तुम्हें तुम में ही उलझा कर रखती है
छोड़ो इन रास्तों को और निकल जाओ कहीं,
दूर किसी पहाड़ो में, जंगलो में या खेतों में,
जहां नदी एक बहती है,
कहानी पहाड़ो की, जंगलों की और खेतों की कहती है,
और तुम समझो उन रातों को,
पहाड़ो, जंगलों और खेतों को छू कर निकलती उन बातों को,
जिनकी तलाश में ना जाने कितने ही मुखोटे तुम पहन चुके हो,
अब उतार फेंको उन्हें,
और आज़ाद हो जाओ,
ज़िंदगी एक मीठा जहर है,
कि क्या करोगे अगर खुद से मिल भी गए तो....!!