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हरियाणा तथा महाराष्ट्र राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम
से जो बात मुझे स्पष्ट हुई वो ये है कि हम लोगों की समझ लोकतांत्रिक रूप से
परिपक्व हो रही है। नागरिकों ने एक ऐसा जनादेश दिया जिससे दोनों प्रमुख दल,
क्षेत्रिय दल और उनके नेता अब जनता जनार्दन को ग्रांटेड नही ले सकते। दोनोँ राज्यों की प्रजा ने अपने जनादेश से यह स्पष्ट कर दिया है की जनता को अब सिर्फ़ चुनाव के समय ही
महत्वपूर्ण मानने की भूल ना की जाए।
लोकतंत्र में जितना महत्व पक्ष का होता है उतना
ही महत्व विपक्ष का भी होता है, हरियाणा की जनता ने इस बार बिलकुल उचित अनुपात
में पक्ष और विपक्ष को शक्तिसंपन्न किया है। पक्ष को सिर्फ़ उतनी ही शक्ति दी
जिससे वह अहंकार से ग्रस्त ना हो व विपक्ष को भी सिर्फ़ उतनी ही शक्ति दी जिससे वह
कुंठा से ग्रस्त ना हो, क्योंकि
समाज के लिए जितना घातक अहंकार होता है उतनी ही घातक कुंठा भी होती है। जनता
जनार्दन ने ना तो एक पक्ष पर स्वयं को न्योछावर किया और ना ही दूसरे पक्ष को अपनी
अरुचि का केंद्र बनाया। ये ठीक वैसे ही हैं जैसे परिपक्व और कुशल माता पिता इस बात
को बहुत अच्छे से जानते हैं की माता पिता का अत्यधिक लाड़ प्यार हो या अत्यधिक
उपेक्षा, दोनों ही संतान
को बिगाड़ने का काम करते हैं और संतान का बिगड़ना पूरे परिवार के लिए अकल्याणकारी
होता है। लोकतान्त्रिक देश में प्रजा, तंत्र की पालक होती है। प्रजा ने इस बार एक कुशल माता पिता
के जैसा सटीक निर्णय लिया जिससे लोकतंत्र अपने मूल स्वरूप को प्राप्त कर समाज के
कल्याण का हेतु बने क्योंकि ये ‘प्रजा
का, प्रजा के लिए, प्रजा के द्वारा बनाया गया तंत्र होता है।’ और यहीं हिन्दुस्तान के लोकतंत्र की
कसोटी हैं।
हर दल को लगता है की वही देश और राज्य के लिए सबसे अच्छा
सोच रहा है। जैसा की हम लोकतांत्रिक व्यवस्था में रहते हैं इसलिए स्वाभाविक है कि
हम सभी की दलों और नेताओं को लेकर अपनी अपनी प्राथमिकताएँ हैं। चुनाव के दोरान
सोशल मीडिया साइट्स पर नेताओं और उसके समर्थको, मान्यताओं, विचारधारा और संस्कृति
के बारे में काफी लोगों के कई कडवे पोस्ट पढने और सुनने को मिले। किसी दल का समर्थन करने
या समर्थक होने पर दुसरे दलों का सम्मान करना चाहिए। किसी व्यक्ति या विचार का
मज़ाक़ उड़ाना, और उससे मज़ाक़ करने के बीच
के अंतर का ज्ञान हमें होना चाहिए। इसलिए सोशल मीडिया पर ऐसे फ़ॉर्वर्ड संदेशों को
जो किसी व्यक्ति, किसी मान्यता, किसी
धारणा, किसी संस्कृति का भद्दा मज़ाक़ उड़ाते हैं उनको
साझा करने से हमें बचना चाहिए क्योंकि इससे अंत में हमें पता चलता है कि हम स्वयं
को ही स्वयं के हाथों ज़ख़्मी कर रहे हैं।
किसी व्यवस्था, व्यक्ति या नीति
पर चोट करने के शालीन, भद्र और मारक तरीक़े भी हैं,
पर हमारा भारत श्रद्धावान, विश्वासी,
आस्थवान, प्रबुद्ध और सुसंस्कृत लोगों
का देश है इसलिए यहाँ के लोग असहमति और अशिष्टता के बीच के अंतर को बख़ूबी समझते
हैं, प्रत्येक भारतवासी यह जानता है कि अशिष्टता पूर्वक
सहमत होने से कहीं अधिक कल्याणकारी शिष्टता पूर्ण असहमति होती है। बाकी राजनीतिक दलों से जिनके श्रधेय
जीते हैं उनको मेरी और से हार्दिक बधाई विचारों में भिन्नता हो सकती है मनों में
नहीं ।
मेरी कही बात आप सब माने, आपको उचित लगे यह आवश्यक नहीं पर आप इस पर गंभीरतापूर्वक विचार अवश्य करेंगे यह मेरा विश्वास है। अंत में एक बिना माँगी सलाह उन चुने हुए
विधायकों के लिए जिन्हें समाज ने अपनी शक्ति से सम्पन्न किया है- “किसी अन्य को अहंकार से मुक्त होने की सलाह
देते समय इस बात का ध्यान रखिए कि हम स्वयं भी अहंकारी ध्वनित ना हों क्योंकि
अहंकार की प्रकृति बहुत विचित्र होती है, जहाँ दूसरे का अहंकार हमें तुरंत दिखाई दे जाता
है वहीं स्वयं का अहंकार हमें कभी दिखाई नहीं देता हैं।“ वैसे भी राजनीति में अहंकार सब में नहीँ
होता हैं इसलिए सबको एक तराजू में नहीँ तोलना चाहिए। राजनीति में अच्छे राजनेता भी बहुत
हैं।
सादर प्रणाम, जय हो ।
Parveen Kumar Sahrawat