106th BLOG POST -->>
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धीरे धीरे से रात को बढ़ने दो
धीरे धीरे से चाँद को जगने दो
खुले आकाश में सितारों की झिलमिल से
धीरे धीरे से आकाश को सजने दो...
धीरे धीरे से पेड़ पौधों को सोने दो
धीरे धीरे से गर्म हवाओं को लहराने दो...
अंधेरी रात में झींगुरों की झनझनाहट से
धीरे धीरे से फ़िज़ा में संगीत बजने दो...
धीरे धीरे से नींद को इंतजार करने दो
धीरे धीरे से सपनो को बहकने दो...
आज की इस खूबसूरत अर्ध प्रकाशमयी रात को
धीरे धीरे से सुबह से गले मिलने दो....!!